सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का
इक अक्स से सौ अक्स में ढलने की तरह का
अब सानेहा-ए-हिज्र-ए-मुसलसल का मज़ा भी
है आतिश-ए-तख़्लीक़ में जलने की तरह का
सब क़ैद हुआ जाता है तंगनाए-ग़ज़ल में
मंज़र पस-ए-मंज़र है बदलने की तरह का
अपनी ही तरह का है क़दम राह-ए-तलब में
गिरने की तरह का न सँभलने की तरह का
समझो कि क़रीब आ गई इरफ़ान की मंज़िल
जीने में मज़ा आए जो मरने की तरह का
ये सोच के मैं गोशा-ए-दिल वा नहीं करता
उस शोख़ का मिलना है बिछड़ने की तरह का
कुछ ऐसे ही मौसम में उसे आना था शायद
है मौसम-ए-दिल फूलने-फलने की तरह का
ये सोच के में गोशा-ए-दिल वा नहीं करता
उस शोख़ का मिलना है बिछड़ने की तरह का
कुछ ऐसे ही मौसम में उसे आना था शायद
है मौसम-ए-दिल फूलने-फलने की तरह का
ग़ज़ल
सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का
शमीम क़ासमी