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सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का | शाही शायरी
sayyal tasawwur hai ubalne ki tarah ka

ग़ज़ल

सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का

शमीम क़ासमी

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सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का
इक अक्स से सौ अक्स में ढलने की तरह का

अब सानेहा-ए-हिज्र-ए-मुसलसल का मज़ा भी
है आतिश-ए-तख़्लीक़ में जलने की तरह का

सब क़ैद हुआ जाता है तंगनाए-ग़ज़ल में
मंज़र पस-ए-मंज़र है बदलने की तरह का

अपनी ही तरह का है क़दम राह-ए-तलब में
गिरने की तरह का न सँभलने की तरह का

समझो कि क़रीब आ गई इरफ़ान की मंज़िल
जीने में मज़ा आए जो मरने की तरह का

ये सोच के मैं गोशा-ए-दिल वा नहीं करता
उस शोख़ का मिलना है बिछड़ने की तरह का

कुछ ऐसे ही मौसम में उसे आना था शायद
है मौसम-ए-दिल फूलने-फलने की तरह का

ये सोच के में गोशा-ए-दिल वा नहीं करता
उस शोख़ का मिलना है बिछड़ने की तरह का

कुछ ऐसे ही मौसम में उसे आना था शायद
है मौसम-ए-दिल फूलने-फलने की तरह का