EN اردو
सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है | शाही शायरी
sawal-e-did pe tewri chaDhai jati hai

ग़ज़ल

सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है

फ़ानी बदायुनी

;

सवाल-ए-दीद पे तेवरी चढ़ाई जाती है
मजाल-ए-दीद पे बिजली गिराई जाती है

ख़ुदा ब-ख़ैर करे ज़ब्त-ए-शौक़ का अंजाम
नक़ाब मेरी नज़र से उठाई जाती है

इसी को जल्वा-ए-ईमान-ए-इश्क़ कहते हैं
हुजूम-ए-यास में भी आस पाई जाती है

अब आ गए हो तो और इक ज़रा ठहर जाओ
अभी अभी मिरी मय्यत उठाई जाती है

मिरे क़यास को अपनी तलाश में खो कर
मिरे हवास को दुनिया दिखाई जाती है