सौदा था बला-ए-जोश पर रात
बिस्तर पर बिछाए नश्तर रात
बिगड़े थे यहाँ वो आन कर रात
बे-तौर बनी थी जान पर रात
हम ता-सहर आप में नहीं थे
क्या जाने रहे वो किस के घर रात
अफ़्साना समझ के सो गए वो
काम आई फ़ुग़ान-ए-बे-असर रात
आईने में हो न मोम जादू
सोते नहीं अब वो ता-सहर रात
तारे आँखें झपक रहे थे
था बाम पे कौन जल्वा-गर रात
अंधेरा पड़ा ज़माने में हाए
ने दिन को है मेहर ने क़मर रात
इस लैल-ओ-नहार-ए-ग़म ने मारा
है रोज़ से सियाह-तर रात
क्या पूछो हो मुनकर-ओ-नकीर आह
बिगड़े जो वो तान-ए-ग़ैर पर रात
ये बात बढ़ी कि मर गए हम
मौत आई थी क़िस्सा मुख़्तसर रात
इस घर में है ऐश-ए-ख़ुल्द 'मोमिन'
क्या जाने कहाँ है दिन किधर रात
ग़ज़ल
सौदा था बला-ए-जोश पर रात
मोमिन ख़ाँ मोमिन