सौदा-ए-गेसू-ए-सियह-ए-यार हो गया
आज़ाद था जो दिल सो गिरफ़्तार हो गया
मज्लिस में जिस तरफ़ तिरी तिरछी नज़र पड़ी
इक तीर था कि तोड़ के सफ़ पार हो गया
सच है ये हिर्स करती है इंसान को ख़राब
ग़म खाया इस क़दर कि मैं बीमार हो गया
दिल को क़रार है न तो जाँ को क़रार है
ये इश्क़ है इलाही कि आज़ार हो गया
अंबा-ए-जिंस से जो उठाईं अज़िय्यतें
सूरत से आदमी की मैं बेज़ार हो गया
सैर-ए-चमन को यार जो आया तो देखना
आँखों में अंदलीब के गुल ख़ार हो गया
'अहक़र' गिला रहा न अदावत का ग़ैर की
जब यार क़त्ल करने पे तय्यार हो गया

ग़ज़ल
सौदा-ए-गेसू-ए-सियह-ए-यार हो गया
राधे शियाम रस्तोगी अहक़र