सौ बातों की बात है प्यारे वो जो ज़ात में होती है
हर इंसान की इज़्ज़त उस के अपने हात में होती है
कोई अजब सा पहलू है जो दिल में घर कर जाता है
कोई अलग सी बात है जो उस की हर बात में होती है
उस की याद भी उस की तरह उल्टे वक़्तों आती है
शाम ढले तक दूर रहे और पास वो रात में होती है
किसी से झूटे वा'दे करना धोका देना होता है
ग़लती तो वो है मेरी जाँ जो जज़्बात में होती है
'ज़हरा-ज़ैदी' आप उसे आख़िर क्यूँ मान नहीं लेतीं
इश्क़ तो रहमत है और रहमत कब ख़ैरात में होती है
ग़ज़ल
सौ बातों की बात है प्यारे वो जो ज़ात में होती है
उरूज ज़ेहरा ज़ैदी