सताइश जिन का पेशा हो गया है
उन्हें शोहरत का चसका हो गया है
मुझे क्या तेरा सौदा हो गया है
जुनूँ का मेरे चर्चा हो गया है
नज़र आती नहीं सड़कों पे लाशें
अमीर-ए-शहर अंधा हो गया है
तिरी यादों से मेरा दिल था रौशन
तिरे मिलने से तन्हा हो गया है
तिरे आँचल के उड़ने से फ़ज़ा में
गुलों का रंग चोखा हो गया है
तुम्हारा नाम क्या आया लबों पर
कि इक तूफ़ान बरपा हो गया है
बहुत हम को था तालिब नाज़ जिस पर
वही अब दिल किसी का हो गया है
ग़ज़ल
सताइश जिन का पेशा हो गया है
इश्तियाक तालिब