सरख़ुशी मेरे लिए असबाब-ए-ग़म मेरे लिए 
मौजज़न है जैसे दरिया-ए-करम मेरे लिए 
हर सितम मेरे लिए है हर करम मेरे लिए 
हुस्न के जल्वे हैं सारे बेश-ओ-कम मेरे लिए 
क्या हक़ीक़त है ग़म-ए-हस्ती की मेरे सामने 
आए दिन ही गर्दन-ए-मीना है ख़म मेरे लिए 
इश्क़ की बे-ताबियाँ हैं हुस्न की रानाइयाँ 
हो गए हैं ज़ीस्त के सामाँ बहम मेरे लिए 
ख़ुद पशेमाँ हूँ मैं अपने नाला-ए-शब-गीर पर 
उफ़ वो चश्म-ए-कैफ़-आगीं और नम मेरे लिए 
दिल की अज़्मत क्या कहूँ दिल की हक़ीक़त क्या कहूँ 
जैसे हम-आग़ोश हों दैर-ओ-हरम मेरे लिए 
इश्क़ की मोजिज़-नुमाई 'कैफ़' अब क्या पूछिए 
बार-ए-हस्ती हो गया है ख़ुद ही कम मेरे लिए
        ग़ज़ल
सरख़ुशी मेरे लिए असबाब-ए-ग़म मेरे लिए
सरस्वती सरन कैफ़

