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सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे | शाही शायरी
sarhad-e-gul se nikal kar hum juda ho jaenge

ग़ज़ल

सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे

हमीद अलमास

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सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे
कल तुम्हारी क़ैद-ए-ख़ुशबू से रहा हो जाएँगे

ज़ेहन में एहसास-ए-रुख़्सत ही न होगा शाम तक
बढ़ते बढ़ते दिन के लम्हे यूँ हवा हो जाएँगे

छोड़ जाओ दामन-ए-इमरोज़ में भी कुछ न कुछ
वर्ना तुम से ताइर-ए-फ़र्दा ख़फ़ा हो जाएँगे

जब न हो कार-ए-नफ़स तो फिर हमारे साथ साथ
ये ज़मीन-ओ-आसमाँ दोनों फ़ना हो जाएँगे

सामने है साअ'त-ए-आख़िर का अन-देखा अज़ाब
उम्र-भर कहते रहे अब बे-नवा हो जाएँगे