सरगर्म-ए-तमाशा था दिल महव-ए-अदा बरसों
समझा ही नहीं नादाँ मफ़्हूम-ए-वफ़ा बरसों
आशुफ़्ता-मिज़ाज आख़िर जाएँ तो कहाँ जाएँ
हर गाम पे यारों ने धोका ही दिया बरसों
इक बार गुज़रता है दिल दर्द की राहों से
रग रग से तड़पती है तासीर-ए-दुआ बरसों
वो आलम-ए-मदहोशी वो मसती-ए-रिंदाना
गुल-रंग जवानी थी क्या होश-रुबा बरसों
आग़ोश-ए-तसव्वुर में सौ बार गो आते हैं
लेकिन न क़रीब आए वो जान-ए-हया बरसों
गो 'मीर' के नालों में तासीर-ए-जुनूँ कम थी
ऐसा भी कहाँ होगा अब शोला-नवा बरसों

ग़ज़ल
सरगर्म-ए-तमाशा था दिल महव-ए-अदा बरसों
मीर बशीर