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सर्दी-ओ-गर्मी-ओ-बरसात में आ जाता है | शाही शायरी
sardi-o-garmi-o-barsat mein aa jata hai

ग़ज़ल

सर्दी-ओ-गर्मी-ओ-बरसात में आ जाता है

मोहम्मद आबिद अली आबिद

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सर्दी-ओ-गर्मी-ओ-बरसात में आ जाता है
मुझ से मिलने वो मज़ाफ़ात में आ जाता है

फ़स्ल-ए-गुल आने पे हो जाती है वीरानी दूर
दिल ख़राबे से ख़राबात में आ जाता है

कभी दानिस्ता अदा हो कभी ना-दानिस्ता
नाम तेरा मिरी हर बात में आ जाता है

जिस्म की नश्व-ओ-नुमा सूरत-ए-अशिया-ए-ज़मीं
रू-ए-ख़ूबाँ फ़लकिय्यतत में आ जाता है

इश्क़ का सब्र-ओ-तहम्मुल ही से क़ाएम है वक़ार
नाला फ़रियाद ख़ुराफ़ात में आ जाता है

ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ से होती है ख़ुदा की ख़िदमत
इश्क़ मख़्लूक़-ए-इबादात में आ जाता है

बंदा हो जाता है जब ख़ूगर-ए-मुश्किल 'आबिद'
ज़ाइक़ा तल्ख़ी-ए-हालात में आ जाता है