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सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन | शाही शायरी
sar se utre nahin phul manzil ki dhun ham-safar baat sun

ग़ज़ल

सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन

रऊफ़ अमीर

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सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन
राह में ख़ार आएँ तो तलवों से चुन हम-सफ़र बात सुन

धूप में तो सफ़र सख़्त दुश्वार है बे-शजर राह का
सर की ख़ातिर कोई सोच साया ही बुन हम-सफ़र बात सुन

राब्ता अपना ज़रख़ेज़ मिट्टी से रख और सरसब्ज़ रह
खा गया कितने सूखे दरख़्तों को घुन हम-सफ़र बात सुन

कुछ बता दिल कि दिल्ली से किस लखनऊ की तरफ़ जा बसें
कौन बस्ती है जिस पर बरसता है हुन हम-सफ़र बात सुन

हर क़दम पर अमीर इस तरह ठहरना सोचना किस लिए
वक़्त छलनी है और इस में पानी न पुन हम-सफ़र बात सुन