सर-निगूँ दिल की तरह दस्त-ए-दुआ हो भी चुके
सिलसिले जिन के जुदा थे वो जुदा हो भी चुके
दश्त में आया नहीं नाक़ा-ए-महमिल-बर-दोश
नक़्श कुछ सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा हो भी चुके
नख़्ल-ए-उम्मीद रहा फिर भी नुमू से महरूम
जब कि मौसम कई आग़ोश-कुशा हो भी चुके
एक बे-नाम सी हसरत है बदन में बाक़ी
जिस क़दर क़र्ज़ थे शब के वो अदा हो भी चुके
ख़्वाहिश-ए-उक़्दा-कुशाई पे नदामत कैसी
रस्म-ए-नाख़ुन से ख़फ़ा बंद-ए-क़बा हो भी चुके
अब तो बस एक तसलसुल है तअल्लुक़ का दराज़
इम्तिहाँ हो भी चुका वादे वफ़ा हो भी चुके
कब तक ऐ बाद-ए-सबा तुझ से तवक़्क़ो रक्खूँ
दिल तमन्ना का शजर है तो हरा हो भी चुके
मैं तो इक गूँज में ज़िंदा हूँ सर-ए-बज़्म 'रज़ी'
जिन को होना था यहाँ नग़्मा-सरा हो भी चुके
ग़ज़ल
सर-निगूँ दिल की तरह दस्त-ए-दुआ हो भी चुके
ख़्वाज़ा रज़ी हैदर