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सर झुका कर शाह के दरबार में | शाही शायरी
sar jhuka kar shah ke darbar mein

ग़ज़ल

सर झुका कर शाह के दरबार में

नबील अहमद नबील

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सर झुका कर शाह के दरबार में
छेद हम ने सौ किए दस्तार में

ज़िंदगानी जैसी ये अनमोल शय
काट दी है हसरत-ए-बे-कार में

दामनों में भरते हैं महरूमियाँ
ले के ख़ाली जेब हम बाज़ार में

सुर्ख़ियाँ बन कर उगलती है लहू
आदमियत शाम के अख़बार में

सर को टकराते रहे हम उम्र-भर
दर कोई निकला नहीं दीवार में

जिस क़दर भरता रहा ऊँची उड़ान
आदमी गिरता गया मेआ'र में

सब परिंदे कर गए हिजरत 'नबील'
कौन बैठे साया-ए-अश्जार में