सर-ए-अफ़्लाक बिछा चाहती है
अब मिरी ख़ाक हवा चाहती है
मैं कहाँ चाहता हूँ सन्नाटा
मेरे अंदर की फ़ज़ा चाहती है
मेरी आवाज़ तो इक क़तरा है
ख़ामुशी सैल-ए-नवा चाहती है
मैं कि भरने में लगा हूँ ख़ुद को
और ग़ज़ल मुझ में ख़ला चाहती है

ग़ज़ल
सर-ए-अफ़्लाक बिछा चाहती है
विकास शर्मा राज़