सर-ए-आईना हैरानी बहुत है
सितमगर को पशेमानी बहुत है
ख़िरद की गरचे अर्ज़ानी बहुत है
जुनूँ की जल्वा-सामानी बहुत है
सभी वहशी यहीं पर आ रहे हैं
मिरे घर में बयाबानी बहुत है
यहाँ हर-चंद सब ख़ुश-पैरहन हैं
मगर देखो तो उर्यानी बहुत है
न जाने कब मिरी मुट्ठी में आए
वो इक लम्हा कि अर्ज़ानी बहुत है
अजब उलझन कि चुप रहना भी मुश्किल
जो कह दूँ तो पशेमानी बहुत है
मैं सम्त-ए-दश्त जाना चाहता था
मगर उस में तन-आसानी बहुत है
भुला कर बैठता हूँ हर किसी का
अभी मुझ में ये नादानी बहुत है
ख़ुदाया जोड़ क्या है इश्क़-ओ-दिल का
तिरी बख़्शिश पे हैरानी बहुत है
ज़मीं को रास कब आएगा 'इरफ़ाँ'
वो हर्फ़-ए-हक़ कि नुक़सानी बहुत है
ग़ज़ल
सर-ए-आईना हैरानी बहुत है
इरफ़ान वहीद