सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ
जुरअत-ए-दिल किधर गई लग़्ज़िश-ए-पा को क्या हुआ
हसरत-ए-अफ़्व क्या हुई जुर्म-ओ-ख़ता को क्या हुआ
सामने है दर-ए-करम दस्त-ए-दुआ को क्या हुआ
वक़्फ़-ए-मज़ाक़-ए-जुस्तुजू दीदा-ओ-दिल हैं अब कहाँ
मंज़िल शौक़-ए-पा ही की ग़ैरत-ए-पा को क्या हुआ
जज़्ब-ओ-असर से बन गया और भी दुश्मन आसमाँ
कर दिया राज़-ए-दिल अयाँ आह-ए-रसा को क्या हुआ
कल तो ब-हद्द-ए-शिकवा थीं इश्क़ की बद-गुमानियाँ
अब न नदामतें हैं क्यूँ शिकवा-सरा को क्या हुआ
शाइ'र-ए-बज़्म-ए-अक़्ल-ओ-होश हाँ कोई और नग़्मा-सरोश
दिल की सदा है क्यूँ ख़मोश दिल की सदा को क्या हुआ
यूँ तो हज़ार नक़्श हैं सफ़्हा-ए-काइनात पर
उस का पता नहीं मगर नक़्श-ए-वफ़ा को क्या हुआ
गुमशुदा-ए-जमाल हूँ दिल ही को साथ ऐ 'शकील'
मुझ को भी ले के खो गया राह-नुमा को क्या हुआ
ग़ज़ल
सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ
शकील बदायुनी