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सर बचे या न बचे तुर्रा-ए-दस्तार गया | शाही शायरी
sar bache ya na bache turra-e-dastar gaya

ग़ज़ल

सर बचे या न बचे तुर्रा-ए-दस्तार गया

अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री

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सर बचे या न बचे तुर्रा-ए-दस्तार गया
शाह-ए-कज-फ़हम को शौक़-ए-दो-सरी मार गया

अब किसी और ख़राबे में सदा देगा फ़क़ीर
याँ तो आवाज़ लगाना मिरा बेकार गया

सरकशो शुक्र करो जा-ए-शिकायत नहीं दार
सर गया बार गया ताना-ए-अग़्यार गया

अव्वलीं चाल से आगे नहीं सोचा मैं ने
ज़ीस्त शतरंज की बाज़ी थी सो मैं हार गया

सद अय्याम पे पटख़े है दिवाना सर को
जिस को चाहा कि न जाए वही इस बार गया