EN اردو
सर-ब-सर पैकर-ए-इज़हार में लाता है मुझे | शाही शायरी
sar-ba-sar paikar-e-izhaar mein lata hai mujhe

ग़ज़ल

सर-ब-सर पैकर-ए-इज़हार में लाता है मुझे

अहमद महफ़ूज़

;

सर-ब-सर पैकर-ए-इज़हार में लाता है मुझे
और फिर ख़ुद ही तह-ए-ख़ाक छुपाता है मुझे

कब से सुनता हूँ वही एक सदा-ए-ख़ामोश
कोई तो है जो बुलंदी से बुलाता है मुझे

रात आँखों में मिरी गर्द-ए-सियह डाल के वो
फ़र्श-ए-बे-ख़्वाबी-ए-वहशत पे सुलाता है मुझे

गुम-शुदा मैं हूँ तो हर सम्त भी गुम है मुझ में
देखता हूँ वो किधर ढूँडने जाता है मुझे

दीदनी है ये तवज्जोह भी ब-अंदाज़-ए-सितम
उम्र भर शीशा-ए-ख़ाली से पिलाता है मुझे

हमा-अंदेशा-ए-गिर्दाब ब-पहलू-ए-नशात
मौज-दर-मौज ही साहिल नज़र आता है मुझे