सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ
हक़ीक़तों को गुमाँ में नहीं मिलाता हूँ
सरिश्क-ए-ग़म रग-ए-जाँ में नहीं मिलाता हूँ
मैं ज़हर आब-ए-रवाँ में नहीं मिलाता हूँ
जो कह दिया कि तिरा हूँ तो सिर्फ़ तेरा हूँ
मैं झूट अपने बयाँ में नहीं मिलाता हूँ
तमाम-शहर तिरी हाँ में हाँ मिलाता है
अकेला मैं तिरी हाँ में नहीं मिलाता हूँ
तुम्हारा ग़म ग़म-ए-दुनिया से दूर रक्खा है
कभी मैं सूद ज़ियाँ में नहीं मिलाता हूँ
गुज़र गया जो तिरी याद के बग़ैर कभी
वो पल मैं उम्र-ए-रवाँ में नहीं मिलाता हूँ
सँवारता हूँ उसे रात जाग कर 'अरशद'
मैं ख़्वाब ख़्वाब-ए-गिराँ में नहीं मिलाता हूँ
ग़ज़ल
सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ
अरशद जमाल हश्मी