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सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ | शाही शायरी
sapedi rang-e-jahan mein nahin milata hun

ग़ज़ल

सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ

अरशद जमाल हश्मी

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सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ
हक़ीक़तों को गुमाँ में नहीं मिलाता हूँ

सरिश्क-ए-ग़म रग-ए-जाँ में नहीं मिलाता हूँ
मैं ज़हर आब-ए-रवाँ में नहीं मिलाता हूँ

जो कह दिया कि तिरा हूँ तो सिर्फ़ तेरा हूँ
मैं झूट अपने बयाँ में नहीं मिलाता हूँ

तमाम-शहर तिरी हाँ में हाँ मिलाता है
अकेला मैं तिरी हाँ में नहीं मिलाता हूँ

तुम्हारा ग़म ग़म-ए-दुनिया से दूर रक्खा है
कभी मैं सूद ज़ियाँ में नहीं मिलाता हूँ

गुज़र गया जो तिरी याद के बग़ैर कभी
वो पल मैं उम्र-ए-रवाँ में नहीं मिलाता हूँ

सँवारता हूँ उसे रात जाग कर 'अरशद'
मैं ख़्वाब ख़्वाब-ए-गिराँ में नहीं मिलाता हूँ