सन्नाटा तूफ़ाँ से सिवा हो ये भी तो हो सकता है
ये कुछ और बड़ा धोका हो ये भी तो हो सकता है
ज़ब्त-ए-जुनूँ से अंदाज़ों पर दर तो बंद नहीं होते
तू मुझ से बढ़ कर रुस्वा हो ये भी तो हो सकता है
रहने दे ये हर्फ़-ए-तसल्ली मेरी हिम्मत पस्त न कर
नाकामी ही में रस्ता हो ये भी तो हो सकता है
ढूँडने वाला ढूँड रहा है और अंदाज़ जफ़ाओं के
मुझ को वफ़ा का ज़ख़्म लगा हो ये भी तो हो सकता है
लाओ इक लम्हे को अपने-आप में डूब के देख आऊँ
ख़ुद मुझ में ही मेरा ख़ुदा हो ये भी तो हो सकता है
मुझ को तो ये ए'ज़ाज़ बहुत है लेकिन तेरी तमन्ना ने
मेरे लबों से काम लिया हो ये भी तो हो सकता है
आख़िर अपने क़दमों को क्यूँ हम मुल्ज़िम ठहराते हैं
राहों ने मुँह मोड़ लिया हो ये भी तो हो सकता है
मेरे तसव्वुर ने बख़्शी है तन्हाई को भी इक महफ़िल
तू महफ़िल महफ़िल तन्हा हो ये भी तो हो सकता है
ग़ज़ल
सन्नाटा तूफ़ाँ से सिवा हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह