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संख मंदिर बजाता रहा | शाही शायरी
sankh mandir bajata raha

ग़ज़ल

संख मंदिर बजाता रहा

मेहदी जाफ़र

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संख मंदिर बजाता रहा
दीप जंगल जगाता रहा

उँगलियाँ जब शुआएँ बनीं
फिर न सूरज से नाता रहा

था समुंदर मिरे सामने
मैं लकीरें बनाता रहा

सीपियाँ कोख की हस्तियाँ
हार मोती दिखाता रहा

खा के कश्ती की लकड़ी मिरी
भूक तूफ़ाँ मिटाता रहा

पुश्त-दर-पुश्त था दौर जब
क्यूँ खंडर पास आता रहा