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संजीदा तबीअ'त की कहानी नहीं समझे | शाही शायरी
sanjida tabiat ki kahani nahin samjhe

ग़ज़ल

संजीदा तबीअ'त की कहानी नहीं समझे

नासिर राव

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संजीदा तबीअ'त की कहानी नहीं समझे
आँखो में रहे और वो पानी नहीं समझे

एक शेर हुआ यूँ कि कलेजे से लगा है
दरिया में उतर कर भी रवानी नहीं समझे

क्या ख़त में लिखा जाए कि समझाए उन्हें हम
जो सामने रह कर भी ज़बानी नहीं समझे

बचपन को लुटाया है जवानी के लिए यार
हम लोग जवानी को जवानी नहीं समझे

पहले तो कहा 'राव' कोई शेर सुनाओ
फिर दोस्त मिरी बात के मअ'नी नहीं समझे