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संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं | शाही शायरी
sang ko chhoD ke tu ne kabhi socha hi nahin

ग़ज़ल

संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं

बबल्स होरा सबा

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संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं
अपनी हस्ती में ख़ुदा को कभी ढूँडा ही नहीं

उलझा उलझा सा है क्यूँ अपने भरम में हर-दम
तू ने ख़ुद अपने गरेबान में झाँका ही नहीं

तेरे होने से करम उस का नज़र आता है
तुझ से बढ़ कर कोई शाहिद वो दिखाता ही नहीं

उस के बंदों में उसे ढूँढ अगर है ख़्वाहिश
वो सनम-ख़ानों के दर पर कभी दिखता ही नहीं

लम्हा लम्हा वो समाया है रग-ओ-पै में 'सबा'
हद से आगे कभी एहसास ने छोड़ा ही नहीं