संग-ए-दर देख के सर याद आया
कोई दीवाना मगर याद आया
फिर वो अंदाज़-ए-नज़र याद आया
चाक-ए-दिल ता-ब जिगर याद आया
ज़ौक़-ए-अरबाब-ए-नज़र याद आया
सज्दा बे-मिन्नत-ए-सर याद आया
हर तबस्सुम पे ये खाता हूँ फ़रेब
कि उन्हें दीदा-ए-तर याद आया
फिर तिरा नक़्श-ए-क़दम है दरकार
सज्दा-ए-राहगुज़र याद आया
जमा करता हूँ ग़ुबार-ए-रह-ए-दोस्त
सर-ए-शोरीदा मगर याद आया
हाए वो मारका-ए-नावक-ए-नाज़
दिल बचाया तो जिगर याद आया
आईना अब नहीं देखा जाता
मैं ब-उनवान-ए-दिगर याद आया
दर्द को फिर है मिरे दिल की तलाश
ख़ाना-बर्बाद को घर याद आया
उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'
क्या करोगे वो अगर याद आया
ग़ज़ल
संग-ए-दर देख के सर याद आया
फ़ानी बदायुनी