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संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं | शाही शायरी
sang-e-dar ban kar bhi kya hasrat mere dil mein nahin

ग़ज़ल

संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं

अहसन मारहरवी

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संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं
तेरे क़दमों में हूँ लेकिन तेरी महफ़िल में नहीं

राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ
जादा कैसा नक़्श-ए-पा तक कोई मंज़िल में नहीं

खो चुके रो रो के घर बाहर की सारी काएनात
अश्क कैसे आँख में अब ख़ून भी दिल में नहीं

बज़्म-आराई से पहले देख ओ नादान देख
कौन है महफ़िल में तेरी कौन महफ़िल में नहीं

पूछता है आरज़ू 'अहसन' की तू क्या बार बार
तेरे मिलने के सिवा कोई हवस दिल में नहीं