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संग-ए-बे-क़ीमत तराशा और जौहर कर दिया | शाही शायरी
sang-e-be-qimat tarasha aur jauhar kar diya

ग़ज़ल

संग-ए-बे-क़ीमत तराशा और जौहर कर दिया

क़ैसर हयात

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संग-ए-बे-क़ीमत तराशा और जौहर कर दिया
शम-ए-इल्म-ओ-आगही से दिल मुनव्वर कर दया

फ़िक्र-ओ-फ़न तहज़ीब-ओ-हिकमत दी शुऊ'र-ओ-आगही
गुम-शुदान-ए-राह को गोया कि रहबर कर दया

चश्म-ए-फ़ैज़ और दस्त वो पारस-सिफ़त जब छू गए
मुझ को मिट्टी से उठाया और फ़लक पर कर दिया

दे जज़ा अल्लाह तू इस बाग़बान-ए-इल्म को
जिस ने ग़ुंचों को खिलाया और गुल-ए-तर कर दिया

ख़ाका-ए-तसवीर था मैं ख़ाली-अज़-रंग-ए-हयात
यूँ सजाया आप ने मुझ को कि 'क़ैसर' कर दिया