सनम के देख कर लब और दहन सुर्ख़
हुआ है ख़ून-ए-बुलबुल से चमन सुर्ख़
शहीद-ए-लाला-रूयाँ को बजा है
दफ़न के वक़्त गर कीजे कफ़न सुर्ख़
हुआ मजनूँ के हक़ में दश्त गुलज़ार
किया है इश्क़ के टेसू ने बन सुर्ख़
गुलों का रंग अब ज़र्द हो गया है
चमन में देख कर तेरा बदन सुर्ख़
कर 'हातिम' याद अहवाल-ए-शहीदाँ
शफ़क़ से जब कि होता है गगन सुर्ख़
ग़ज़ल
सनम के देख कर लब और दहन सुर्ख़
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम