EN اردو
समंद-ए-गर्म जो याँ उस सवार का पहुँचा | शाही शायरी
samand-e-garm jo yan us sawar ka pahuncha

ग़ज़ल

समंद-ए-गर्म जो याँ उस सवार का पहुँचा

मीर शेर अली अफ़्सोस

;

समंद-ए-गर्म जो याँ उस सवार का पहुँचा
ग़ुबार ता-फ़लक इस ख़ाकसार का पहुँचा

तू सच बता कि तुझे इतनी क्यूँ है बेचैनी
मगर पयाम किसी बे-क़रार का पहुँचा

मले है पाँव से अपने वो लाला-रू हर-दम
ये मर्तबा तो दिल-ए-दाग़-दार का पहुँचा

है याँ तलक तो नज़ाकत गुलों के गजरे से
लचकने लगता है उस गुल-अज़ार का पहुँचा

क़फ़स से छुटने की उम्मीद ही नहीं 'अफ़सोस'
हुसूल क्या है जो मुज़्दा बहार का पहुँचा