समंद-ए-गर्म जो याँ उस सवार का पहुँचा
ग़ुबार ता-फ़लक इस ख़ाकसार का पहुँचा
तू सच बता कि तुझे इतनी क्यूँ है बेचैनी
मगर पयाम किसी बे-क़रार का पहुँचा
मले है पाँव से अपने वो लाला-रू हर-दम
ये मर्तबा तो दिल-ए-दाग़-दार का पहुँचा
है याँ तलक तो नज़ाकत गुलों के गजरे से
लचकने लगता है उस गुल-अज़ार का पहुँचा
क़फ़स से छुटने की उम्मीद ही नहीं 'अफ़सोस'
हुसूल क्या है जो मुज़्दा बहार का पहुँचा
ग़ज़ल
समंद-ए-गर्म जो याँ उस सवार का पहुँचा
मीर शेर अली अफ़्सोस