समझ लिए भी जो हालात कुछ नहीं होगा
बहुत अँधेरी है ये रात कुछ नहीं होगा
किसे पड़ी है कि बहते घरों की फ़िक्र करे
बहुत गुदाज़ है बरसात कुछ नहीं होगा
ये जिस्म टूट के हिस्सों में बटने वाला है
फिर इस पे अपनी रिवायात कुछ नहीं होगा
हमारे सामने हम हैं लड़ाई किस से करें
जो हो गई भी तुम्हें मात कुछ नहीं होगा
बस एक बार बदलना है और फलना है
हज़ार बार शिकायात कुछ नहीं होगा
समाअतों में भी दर आए हैं तिरे मंज़र
सुनाई देती हैं आयात कुछ नहीं होगा
समय कठिन है सफ़र दूर का है मिल जाओ
करोगे कितने सवालात कुछ नहीं होगा
फिर आज दूसरे सेहनों में फल गिरे अपने
फिर आज मर्ग-ए-मुफ़ाजात कुछ नहीं होगा
बस एक वक़्फ़ा सहर का उफ़ुक़ के ज़ीने पर
तवील क़िस्सा-ए-ज़ुलमात कुछ नहीं होगा
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ग़ज़ल
समझ लिए भी जो हालात कुछ नहीं होगा
नज्मुस्साक़िब