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सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ | शाही शायरी
salib-e-mauja-e-ab-e-hawa pe likkha hun

ग़ज़ल

सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ

फ़ारूक़ मुज़्तर

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सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ
अज़ल से ता-ब-अबद हर्फ़ हर्फ़ बिखरा हूँ

वजूद वहम मिरा हम-सफ़र रहा दिन भर
फ़सील-शाम से देखा तो साया साया हूँ

समेट लेंगे किसी दिन निगाह मौसम की
शजर शजर पे अभी अपना नाम लिखता हूँ

चहार सम्त घिरा हूँ मैं पानियों में यहाँ
मिरा ये कर्ब कि इक डूबता जज़ीरा हूँ

हवा के साथ कहाँ तक उड़ान भरता हूँ
हुदूद-ए-जिस्म में इक पर-कटा परिंदा हूँ