'सख़ी' से छूट कर जाएँगे घर आप
अजी कुछ ख़ैर भी है हैं किधर आप
वो आशिक़ हैं कि मरने पर हमारे
करेंगे याद हम को उम्र भर आप
परी समझें परी, हूरें कहें हूर
हुए किस नूर के पैदा बशर आप
न आशिक़ हैं ज़माने में न माशूक़
इधर हम रह गए हैं और उधर आप
दिखाएँगे हम अपनी लाग़री भी
अभी तो देखिए अपनी कमर आप
मिरे नाले अगर सुनने का है शौक़
तो साहब हाथ रखिए कान पर आप
रसाई उस के ज़ुल्फ़ों तक न होगी
'सख़ी' बे-फ़ाएदा मारें न सर आप
ग़ज़ल
'सख़ी' से छूट कर जाएँगे घर आप
सख़ी लख़नवी