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सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ | शाही शायरी
saje hue baam-o-dar se aage ki sochta hun

ग़ज़ल

सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ

शमशीर हैदर

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सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
मैं घर बना कर भी घर से आगे की सोचता हूँ

कहीं अँधेरे में जा बसूँगा चराग़ बन कर
मैं तेरे शम्स-ओ-क़मर से आगे की सोचता हूँ

तुझे समुंदर से कुछ नहीं और लेना देना
मगर मैं लाल-ओ-गुहर से आगे की सोचता हूँ