सजन आवें तो पर्दे से निकल कर भार बैठूँगी
बहाना कर के मोतियाँ का पिरोने हार बैठूँगी
उनो यहाँ आओ कहेंगे तो कहूँगी काम करती हूँ
अठलती होर मठलती चुप घड़ी दो-चार बैठूँगी
नज़िक में उन के जाने को ख़ुशी सूँ शाद हूँ दिल में
वले लोगों में दिखलाने कूँ हो बेज़ार बैठूँगी
बलायाँ जीव का ले मैं पड़ूँगी पाँव में दिल सूँ
वले ज़ाहिर में दिखलाने कूँ हो अग़्यार बैठूँगी
करूँगी ज़ाहिरा चुप में ग़ुसा होर मान-हट लेकिन
सिरीजन पर ते जिव अपना ये जिव में वार बैठूँगी
कने को चुप कती हूँ मैं वले मैं दिल में घटकी हूँ
नज़िक हो 'हाशमी' सूँ मिल कर आठों पार बैठूँगी

ग़ज़ल
सजन आवें तो पर्दे से निकल कर भार बैठूँगी
मीरां हाश्मी