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सैंकड़ों गुल हुए ख़ुश-रंग चमन में खिल के | शाही शायरी
sainkaDon gul hue KHush-rang chaman mein khil ke

ग़ज़ल

सैंकड़ों गुल हुए ख़ुश-रंग चमन में खिल के

मिर्ज़ा अली लुत्फ़

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सैंकड़ों गुल हुए ख़ुश-रंग चमन में खिल के
आख़िरश ख़ाक हुए ख़ाक में सब रुल-मिल के

जिस घड़ी यार मिरा मुझ से जुदा होने लगा
रोए हम ख़ूब तरह उस के गले मिल मिल के

आह कीधर को चले जाते हो छोड़े तन्हा
हम-रहो हम भी मुसाफ़िर हैं इसी मंज़िल के

'लुत्फ' ये शेर कहा जिस ने अजब शाएर था
जिस के सुनने से हुए टुकड़े हज़ारों दिल के