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सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले | शाही शायरी
sahen kab tak jafaen bewafai dekhne wale

ग़ज़ल

सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले

मुज़्तर ख़ैराबादी

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सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
कहाँ तक जान पर खेलें जुदाई देखने वाले

तिरे बीमार-ए-ग़म की अब तो नब्ज़ें भी नहीं मिलतीं
कफ़-ए-अफ़सोस मलते हैं कलाई देखने वाले

ख़ुदा से क्यूँ न माँगें क्यूँ करें मिन्नत अमीरों की
ये क्या देंगे किसी को आना-पाई देखने वाले

बुतों की चाह बनती है सबब इश्क़-ए-इलाही का
ख़ुदा को देख लेते हैं ख़ुदाई देखने वाले

महीनों भाई-बंदों ने मिरा मातम किया 'मुज़्तर'
महीनों रोए ख़ाली चारपाई देखने वाले