सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
कहाँ तक जान पर खेलें जुदाई देखने वाले
तिरे बीमार-ए-ग़म की अब तो नब्ज़ें भी नहीं मिलतीं
कफ़-ए-अफ़सोस मलते हैं कलाई देखने वाले
ख़ुदा से क्यूँ न माँगें क्यूँ करें मिन्नत अमीरों की
ये क्या देंगे किसी को आना-पाई देखने वाले
बुतों की चाह बनती है सबब इश्क़-ए-इलाही का
ख़ुदा को देख लेते हैं ख़ुदाई देखने वाले
महीनों भाई-बंदों ने मिरा मातम किया 'मुज़्तर'
महीनों रोए ख़ाली चारपाई देखने वाले
ग़ज़ल
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले
मुज़्तर ख़ैराबादी