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सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना | शाही शायरी
sahar ne aa kar mujhe sulaya to maine jaana

ग़ज़ल

सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना

वज़ीर आग़ा

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सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना
फिर एक सपना मुझे दिखाया तो मैं ने जाना

ब-जुज़ हवा अब रुकेगा कोई न पास मेरे
अँधेरी शब में दिया बुझाया तो मैं ने जाना

गया ये कह कर कि एक शब की है बात सारी
मगर वो जब लौट कर न आया तो मैं ने जाना

मैं एक तिनका रुका खड़ा था नदी किनारे
नदी ने बहना मुझे सिखाया तो मैं ने जाना

सियाह बादल में बर्क़ कौंदी तो सब ने देखा
तिरी हँसी ने मुझे रुलाया तो मैं ने जाना

मैं ओढ़ कर ख़ुद को सो गया था कि बे-ख़तर था
कोई परिंदा जो फड़-फड़ाया तो मैं ने जाना

मिरे ही सीने में सख़्त पत्थर सी शय है कोई
जो आज तू ने मुझे बताया तो मैं ने जाना

मैं तेरी नज़रों से गिर चुका था मगर जो तू ने
मिरी नज़र से मुझे गिराया तो मैं ने जाना

हवा में शामिल थी तिश्नगी उस के तन-बदन की
हवा ने मेरा बदन जलाया तो मैं ने जाना