सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
हर एक मोड़ पे आशोब इक नया रख आए
कहाँ भटकती फिरेगी अँधेरी गलियों में
हम इक चराग़ सर-ए-कूचा-हवा रख आए
तमाम उम्र सफ़र से ग़रज़ रही हम को
हर इख़्तिताम पे हम एक इब्तिदा रख आए
भटक न जाए मुसाफ़िर कोई हमारे ब'अद
सो राह-ए-शौक़ में हम अपने नक़्श-ए-पा रख आए
ये बे-समाअत ओ बे-चेहरा बसारत लोग
ये पत्थरों में कहाँ आप आईना रख आए
ग़ज़ल
सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
असलम महमूद