EN اردو
सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए | शाही शायरी
safar se pahle sarabon ka silsila rakh aae

ग़ज़ल

सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए

असलम महमूद

;

सफ़र से पहले सराबों का सिलसिला रख आए
हर एक मोड़ पे आशोब इक नया रख आए

कहाँ भटकती फिरेगी अँधेरी गलियों में
हम इक चराग़ सर-ए-कूचा-हवा रख आए

तमाम उम्र सफ़र से ग़रज़ रही हम को
हर इख़्तिताम पे हम एक इब्तिदा रख आए

भटक न जाए मुसाफ़िर कोई हमारे ब'अद
सो राह-ए-शौक़ में हम अपने नक़्श-ए-पा रख आए

ये बे-समाअत ओ बे-चेहरा बसारत लोग
ये पत्थरों में कहाँ आप आईना रख आए