EN اردو
सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया | शाही शायरी
safar mein ab ke ajab tajraba nikal aaya

ग़ज़ल

सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया

राजेश रेड्डी

;

सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया
भटक गया तो नया रास्ता निकल आया

मेरे ही नाम की तख़्ती लगी थी जिस दर पर
वो जब खुला तो किसी और का निकल आया

दुखों की झाड़ियाँ उगती चली गईं दिल में
हर एक झाड़ी से जंगल घना निकल आया

इक और नाम जुड़ा दुश्मनों के नामों में
इक और दोस्त मिरा आईना निकल आया

कुछ आज अश्कों की लज़्ज़त नई नई सी है
पुराने ग़म का नया ज़ाइक़ा निकल आया

ये मेरा अक्स है या और है कोई मुझ में
कि जिस का क़द मिरे क़द से बड़ा निकल आया

बढ़े कुछ इस तरह दोनों ही दोस्ती की तरफ़
कि दरमियाँ में नया फ़ासला निकल आया

दुआ सलाम से आगे जो थोड़ी बात बढ़ी
जो उस का दुख था वही दुख मिरा निकल आया

मिरी ग़ज़ल में किसी बेवफ़ा का ज़िक्र न था
न जाने कैसे तिरा तज़्किरा निकल आया