सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना
क़दम यक़ीन में मंज़िल गुमान में रखना
जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन
जो खो गया है उसे भी मकान में रखना
जो देखती हैं निगाहें वही नहीं सब कुछ
ये एहतियात भी अपने बयान में रखना
वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता
बना के चाँद उसे आसमान में रखना
चमकते चाँद सितारों का क्या भरोसा है
ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना
ग़ज़ल
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना
निदा फ़ाज़ली