सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
नज़र से गिरना भी गोया ख़बर में रहना है
अभी से ओस को किरनों से पी रहे हो तुम
तुम्हें तो ख़्वाब सा आँखों के घर में रहना है
हवा तो आप की क़िस्मत में होना लिक्खा था
मगर मैं आग हूँ मुझ को शजर में रहना है
निकल के ख़ुद से जो ख़ुद ही में डूब जाता है
मैं वो सफ़ीना हूँ जिस को भँवर में रहना है
तुम्हारे ब'अद कोई रास्ता नहीं मिलता
तो तय हुआ कि उदासी के घर में रहना है
जला के कौन मुझे अब चले किसी की तरफ़
बुझे दिए को तो 'आदिल' खंडर में रहना है
ग़ज़ल
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी