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सफ़र-ब-ख़ैर प रख़्त-ए-सफ़र न ले जाना | शाही शायरी
safar-ba-KHair pa raKHt-e-safar na le jaana

ग़ज़ल

सफ़र-ब-ख़ैर प रख़्त-ए-सफ़र न ले जाना

सय्यद नसीर शाह

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सफ़र-ब-ख़ैर प रख़्त-ए-सफ़र न ले जाना
ज़मीं की हसरतें अब चाँद पर न ले जाना

विदाअ की शाम इन्ही साहिलों पे रहने दो
उठा के दश्त कहीं अपने घर न ले जाना

मिरी थकी हुई ज़ुल्मत-गुरेज़ पलकों से
कहीं उमीद-ए-नुमूद-ए-सहर न ले जाना

मता-ए-अर्ज़ था धरती पे लौट आया है
किसी को अर्श पे बार-ए-दिगर न ले जाना

ये पास होगा तो तुम सा तलाश कर लूँगा
चले तो हो मिरा हुस्न-ए-नज़र न ले जाना