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सदमे झेलूँ जान पे खेलूँ उस से मुझे इंकार नहीं है | शाही शायरी
sadme jhelun jaan pe khelun us se mujhe inkar nahin hai

ग़ज़ल

सदमे झेलूँ जान पे खेलूँ उस से मुझे इंकार नहीं है

क़तील शिफ़ाई

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सदमे झेलूँ जान पे खेलूँ उस से मुझे इंकार नहीं है
लेकिन तिरे पास वफ़ा का कोई भी मेआ'र नहीं है

ये भी कोई बात है आख़िर दूर ही दूर रहें मतवाले
हरजाई है चाँद का जोबन या पंछी को प्यार नहीं है

एक ज़रा सा दिल है जिस को तोड़ के भी तुम जा सकते हो
ये सोने का तौक़ नहीं ये चाँदी की दीवार नहीं है

मल्लाहों ने साहिल साहिल मौजों की तौहीन तो कर दी
लेकिन फिर भी कोई भँवर तक जाने को तय्यार नहीं है

फिर भी वही सैलाब-ए-हवादिस जाने दो ऐ साहिल वालो
या इस बार सफ़ीना डूबा या उस के मंजधार नहीं है

क़ैद-ए-क़फ़स के बा'द करेगा क़ैद-ए-गुलिस्ताँ कौन गवारा
अब भी वही ज़ंजीरें हैं गो पहली सी झंकार नहीं है