सदियों का कर्ब लम्हों के दिल में बसा दिया
पल भर की ज़िंदगी को दवामी बना दिया
दीवार में वो चुन ही रहा था मुझे मगर
कम-बख़्त एक संग कहीं मुस्कुरा दिया
जब और कोई मद्द-ए-मुक़ाबिल नहीं रहा
मेरी अना ने मुझ को मुझी से लड़ा दिया
मुझ से न पूछ कल के मुहक़क़िक़ से पूछना
शो'लों के लम्स ने मुझे क्यूँ यख़ बना दिया
यादों के शहर में भी न 'हैरत' सुकूँ मिला
हालात ने मिज़ाज कुछ ऐसा बना दिया
ग़ज़ल
सदियों का कर्ब लम्हों के दिल में बसा दिया
बलराज हयात