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सदियों का कर्ब लम्हों के दिल में बसा दिया | शाही शायरी
sadiyon ka karb lamhon ke dil mein basa diya

ग़ज़ल

सदियों का कर्ब लम्हों के दिल में बसा दिया

बलराज हयात

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सदियों का कर्ब लम्हों के दिल में बसा दिया
पल भर की ज़िंदगी को दवामी बना दिया

दीवार में वो चुन ही रहा था मुझे मगर
कम-बख़्त एक संग कहीं मुस्कुरा दिया

जब और कोई मद्द-ए-मुक़ाबिल नहीं रहा
मेरी अना ने मुझ को मुझी से लड़ा दिया

मुझ से न पूछ कल के मुहक़क़िक़ से पूछना
शो'लों के लम्स ने मुझे क्यूँ यख़ बना दिया

यादों के शहर में भी न 'हैरत' सुकूँ मिला
हालात ने मिज़ाज कुछ ऐसा बना दिया