सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ
जो शय कहीं न मिले मैं कहाँ तलाश करूँ
मिरी हवस के मुक़ाबिल ये शहर छोटे हैं
ख़ला में जा के नई बस्तियाँ तलाश करूँ
अज़िय्यतों की भी अपनी ही एक लज़्ज़त है
मैं शहर शहर फिरूँ नेकियाँ तलाश करूँ
मकाँ-फ़रेब ख़ुशामद मआश समझौते
बराए कश्ती-ए-जाँ बादबाँ तलाश करूँ
तो कब तलक यूँही सूरज तले रहेगी धूप
तिरे लिए भी कोई साएबाँ तलाश करूँ
गुहर-नसीब सदफ़ का तो ज़िक्र क्या 'अंजुम'
मैं साहिलों के लिए सीपियाँ तलाश करूँ
ग़ज़ल
सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ
अंजुम ख़लीक़