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सदा-ए-क़ैस शौक़-ए-दश्त-पैमाई नमी-दानम | शाही शायरी
sada-e-qais shauq-e-dasht-paimai nami-danam

ग़ज़ल

सदा-ए-क़ैस शौक़-ए-दश्त-पैमाई नमी-दानम

अासिफ़ अंजुम

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सदा-ए-क़ैस शौक़-ए-दश्त-पैमाई नमी-दानम
न जाने कौन सी कल खींच के लाई नमी-दानम

फ़क़ीरों को मिरे शाहाना ख़िलअ'त से नवाज़ा है
अक़ीदत है या रंग-ए-ज़ात-आराई नमी-दानम

खड़े हैं रास्ते में हाथ बाँधे पेड़ सफ़-बस्ता
हवा क्यूँ चाँदनी के दोश पर आई नमी-दानम

वजूद-ए-ख़ाक से लिपटे रहे पहलू के अंगारे
बदन की आग जाने कैसे बुझ पाई नमी-दानम

दरून-ए-सोज़-ए-रिंदाना दरून-ए-आह-ए-मस्ताना
ब-गोश-ए-यार तक कैसी सदा आई नमी-दानम