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सदा-ए-दिल न कहीं धड़कनों में गुम हो जाए | शाही शायरी
sada-e-dil na kahin dhaDkanon mein gum ho jae

ग़ज़ल

सदा-ए-दिल न कहीं धड़कनों में गुम हो जाए

ख़ुशबीर सिंह शाद

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सदा-ए-दिल न कहीं धड़कनों में गुम हो जाए
ये क़ाफ़िला न कहीं रास्तों में गुम हो जाए

ये दिल का दर्द जो आँखों में आ गया है मिरी
मैं चाहता था मिरे क़हक़हों में गुम हो जाए

तुझे ख़बर भी है ये बे-हिसों की बस्ती है
तिरी सदा न कहीं पत्थरों में गुम हो जाए

मैं ख़ुद को ढूँढने निकला तो खो गया जैसे
निकल के घर से कोई रास्तों में गुम हो जाए

न जाने आज है तारों को क्यूँ ये अंदेशा
ये रात भी न कहीं जुगनुओं में गुम हो जाए

मैं बार-हा तिरी यादों में इस तरह खोया
कि जैसे कोई नदी जंगलों में गुम हो जाए

चमन से क्यूँ न शिकायत हो 'शाद' रंगों को
हर एक फूल अगर ख़ुशबुओं में गुम हो जाए