EN اردو
सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ | शाही शायरी
sad-saughat sakun firdaus september aa

ग़ज़ल

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

;

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ
ऐ रंगों के मौसम मंज़र मंज़र आ

आधे-अधूरे लम्स न मेरे हाथ पे रख
कभी सुपुर्द-ए-बदन सा मुझे मयस्सर आ

कब तलक फैलाएगा धुँद मिरे ख़ूँ में
झूटी सच्ची नवा में ढल कर लब पर आ

मुझे पता था इक दिन लौट के आएगा तू
रुका हुआ दहलीज़ पे क्यूँ है अंदर आ

ऐ पैहम-पर्वाज़ परिंदे दम ले ले
नहीं उतरता आँगन में तो छत पर आ

उस ने अजब कुछ प्यार से अब के लिक्खा 'बानी'
बहुत दिनों फिर घूम लिया वापस घर आ