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सच तो ये है बे-जगह रब्त इन दिनों पैदा किया | शाही शायरी
sach to ye hai be-jagah rabt in dinon paida kiya

ग़ज़ल

सच तो ये है बे-जगह रब्त इन दिनों पैदा किया

जुरअत क़लंदर बख़्श

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सच तो ये है बे-जगह रब्त इन दिनों पैदा किया
सोच है हर दम यही हम को कि हम ने क्या किया

वो गया उठ कर जिधर को मैं अधर हैरान सा
उस के जाने पर भी कितनी देर तक देखा किया

मेरी और उस शोख़ की साहिब-सलामत जो हुई
सब्र ओ ताक़त ने कहा लो हम ने तो मुजरा किया

सैर-ए-गुल करता था वो और आह बेताबी से मैं
हर तरफ़ गुलशन में जूँ आब-ए-रवाँ दौड़ा किया

जब तलक करते रहे मज़कूरा उस का मुझ से लोग
जी में कुछ सोचा किया मैं और दिल धड़का किया

दर्द-ए-दिल कहना मिरा शायद कि उस ने सुन लिया
वर्ना क्यूँ मुझ को धराता है भला अच्छा किया

दम-ब-दम हसरत से देखूँ क्यूँ न सू-ए-चर्ख़ मैं
उस ने औरों का किया उस को हमें जिस का किया

दिल मिले पर भी मिलाप ऐसी जगह होते रहे
जो इधर तड़पा किए हम वो उधर तड़पा किया

मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किया

बस कि है वो शोहरा-ए-आफ़ाक़ उस के वास्ते
ये दिल-ए-दीवाना किस किस शख़्स से झगड़ा किया

सोज़िश-ए-दिल क्या कहूँ मैं जब तलक जीता रहा
एक अँगारा सा पहलू में मिरे दहका किया

इश्क़-बाज़ी में कहा 'जुरअत' को सब ने देख कर
ये अज़ीज़ अपनी हमेशा जान पर खेला किया