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सच है या फिर मुग़ालता है मुझे | शाही शायरी
sach hai ya phir mughaalta hai mujhe

ग़ज़ल

सच है या फिर मुग़ालता है मुझे

बलवान सिंह आज़र

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सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
कोई आवाज़ दे रहा है मुझे

एक उम्मीद जाग उठती है
आसमाँ जब भी देखता है मुझे

छीन लेता है मेरे सारे गुहर
जब समुंदर खँगालता है मुझे

ये मरासिम बहुत पुराने हैं
दश्त सदियों से जानता है मुझे

मेरी जानिब भी आ ज़रा फ़ुर्सत
अपने बारे में सोचना है मुझे