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सच है इन को मुझ से क्या और मेरे अफ़्साने से क्या | शाही शायरी
sach hai inko mujhse kya aur mere afsane se kya

ग़ज़ल

सच है इन को मुझ से क्या और मेरे अफ़्साने से क्या

शौकत थानवी

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सच है इन को मुझ से क्या और मेरे अफ़्साने से क्या
कर दिया दीवाना तो अब काम दीवाने से क्या

इश्क़ का आलम जुदा है हुस्न की दुनिया जुदा
मुझ को आबादी से क्या और तुम को वीराने से क्या

मेरी हैरत इस तरफ़ है तेरी ग़फ़लत उस तरफ़
देखिए दीवाना अब कहता है दीवाने से क्या

शम्अ' की लौ है तो उस का रुख़ भी है सू-ए-फ़लक
रौशनी उड़ जाएगी मेरे सियह-ख़ाने से क्या

फिर हरम में हो रहा है इम्तिहान-ए-अहल-ए-दिल
सज्दा-हा-ए-मासियत ले आऊँ बुत-ख़ाने से क्या

जिस तरह गुज़री है अब तक अब भी गुज़रेगी यूँही
हम नहीं बदले तो दुनिया के बदल जाने से क्या

मय-कदा से ख़ुम में आई ख़ुम से शीशे में ढली
मय मिरे लब तक न आ जाएगी पैमाने से क्या

आलम-ए-हस्ती में क्यूँ लाई है ऐ उम्र-ए-रवाँ
ऐसे वीराने की रौनक़ ऐसे दीवाने से क्या

दीन इधर दुनिया उधर और बीच में वाइ'ज़ का वा'ज़
फेर लें 'शौकत' नज़र हम अपनी पैमाने से क्या